जागरण संवाद केंद्र, गुड़गांव : करीब बीस लाख शहरी आबादी वाले साइबर सिटी में शहर के उच्चतर शिक्षा की बदहाल स्थिति की गवाही दे रहा है यहां का एक मात्र जिला पुस्तकालय। इस पुस्तकालय की स्थिति यह है कि अंदर जाते ही घुटन महसूस होती है। जर्जर भवन, टूटी कुर्सियां, झूलते बिजली के तार तथा पुराने रैक पर सजी किताबें, जिन्हें निकालते हुए डर लगता है कि कहीं रैक टूट न जाए।
इस पुस्तकालय को करीब पांच सालों से नया भवन दिए जाने की बात चल रही है। कई बार मौजूदा भवन के पीछे की खाली पड़ी जमीन पर नए भवन के लिए एस्टीमेट बनाकर भेजा गया लेकिन अभी तक कोई परिणाम नहीं आया। सीनियर लाइब्रेरियन रणबीर सिंह के मुताबिक एक बार फिर उनसे बढ़ी कीमतों के हिसाब से नया अनुमानित बजट मांगा गया था, जिसे उन्होंने यहां से पीडब्ल्यूडी से बनवा कर भेजा, लेकिन उसके बाद भी अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। भवन की बात तो दूर है, यहां की लाइब्रेरी के रखरखाव की स्थिति भी चिंताजनक है।
गर्मी की छुंिट्टयों में बच्चे भी इस लाइब्रेरी में होलीडे होमवर्क के लिए आते हैं। ऐसे में सीनियर सिटीजन, कालेज के विद्यार्थी तथा स्कूल के विद्यार्थियों में सीटों को लेकर खींचतान मची रहती है। हालांकि रणबीर का कहना है कि उन्होंने हर वर्ग के लिए सीटें आरक्षित कर रखी हैं, लेकिन यहां मौजूद 30 सीटें प्रतिदिन तकरीबन 100 पाठकों के मुकाबले काफी कम हैं।
लोकसंपर्क विभाग को देने की तैयारी
जिला पुस्तकालय इस बदहाली से तब जूझ रहा है जबकि उच्चतर शिक्षा विभाग के तहत यह आता है। अब विभाग इससे अपना पल्ला झाड़ने की तैयारी में है तथा इस लाइब्रेरी को लोक संपर्क विभाग को सौंपने की बात कर रहा है। अगर ऐसा हुआ, तो इसकी स्थिति और भी दयनीय हो जाने की आशंका है। रणबीर सिंह के मुताबिक उनके पास एक पत्र आया है जिसमें पूछा गया है कि लाइब्रेरी को लोक संपर्क विभाग के तहत कर दिया जाए। इस बारे में यहां से जवाब भेजा गया है कि पुस्तकालय प्रबंधन नहीं चाहता कि इसे उच्चतर शिक्षा विभाग से हटाया जाए।
शहर की स्थिति प्रदेश के हर जिले से बेहतर है। सर्वाधिक रेवेन्यू देने वाले इस शहर में एक ढंग की लाइब्रेरी भी न हो तो यह विभाग के लिए शर्म की बात है। सिरसा जैसे शहरों में जिला पुस्तकालयों की स्थिति देखें तो पता चलता है कि यहां का पुस्तकालय उसके मुकाबले कुछ भी नहीं है।
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